मिथिला की रोहू मछली क्यों है बाकी जगहों से इतना खास? मिलेगा GI टैग : Bihar


Rohu Fish: अपने एक कहावत तो अवश्य सुनी होगी, पग-पग पोखर माछ माखन यही मिथिला की पहचान है। और अब यह पहचान ग्लोबल होने वाली है। क्योंकि मखाने को GI टैग मिल चुका है. अब बारी है मिथिला की रोहू मछली की। जो बहुत जल्द GI टैग हासिल कर सकती है। और इसलिए आज हम आप सभी को मिथिला की रोहू मछली को जीआई टैग दिलाने के उपडेट्स के बारे में बतायेंगे। वहीं यदि रोहू मछली को जीआई टैग मिल जाता है तो इसका व्यापार बढ़ेगा और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान बनेगी। तो चलिए जानते है Rohu Fise GI Tag के बारे में विस्तार से..

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हम आप सभी को बता दें कि, राहु मछली का वैज्ञानिक नाम-Labeo Rohita है। ये ताजे मीठे पानी में पायी जाती है और यह नाव के आकार की होती है। वहीं, रोहू मछली को जीआई टैग दिलाने के लिए क्षेत्र के विभिन्न तालाबों से सैंपल इकठा किया जा रहा है। और ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि, जीआई टैग मिलने के बाद इसकी पैदावार में वृद्धि होगी। वहीं इसका उत्पादन कर रहे सभी किसानों को भी मोटा मुनाफा हासिल होगा। साथ ही इसका व्यापार बढ़ेगा और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान भी बनेगी।

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रोहू मछली में क्या है खास

वहीं रिसर्च के बाद मछली प्रेमी बताते हैं मिथिला की रोहू मछली का स्वाद लाजवाब होता है। इसके साथ-साथ ये अधिक पौष्टिक भी होती है। वहीं रोहू मछली अपने स्वाद और गुणवत्ता की वजह से डिमांड काफी है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में रोहू मछली का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। वही इसे जीआई टैग मिलने के बाद इसका मार्केट और बढ़ जाएगा।

मिथिला की रोहू-दूसरी जगह से बेहतर क्यों

हम आप सभी को यह बता दें मिथिला के रोहू मछली को व्यापक पहचान दिलाने में मत्स्य विभाग जुटे है। जिसके लिए बिहार के दो इंस्टिट्यूट्स को रोहू के सैंपल कलेक्शन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जिसमें से एक एक मत्स्यकी महाविद्यालय किशनगंज है तो वहीं दूसरा मत्स्यकी महाविद्यालय ढोली मुजफ्फरपुर है। बता दें कि, इन दोनों इंस्टिट्यूट के पदाधिकारी दरभंगा जिले के विभिन्न तालाबों से सैंपल लेकर उस पर शोध करेंगे। जिसमें दूसरे स्थान की रोहू की तुलना में मिथिला क्षेत्र की रोहू मछली पर शोध किया जायेगा।

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